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भगवती सूत्र दा. १: 5 ४ गरकावाना की एक दुसरे से विशालता
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णरएहिती महत्तग चेव ४, णी तहा महप्पवेमणतरा चेव ४ । तेसु णं णरएमु णेरड्या पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए णरएहितो महाकम्मतरा चेव ४ णो तहा अप्पकम्मतग चेव ४; अप्पड्ढियतरा
चेव २ णो तहा महड्ढियतरा चेव २ । पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिण्णि णिरयावासमयसहस्मा पण्णत्ता; एवं जहा छट्टीए भणिया एवं मत्त वि पुढवीओ परोप्परं भण्णति जाव रयणप्पभंति, जाव णो तहा महड्ढियतरा चेव. अप्पज्जुइयतरा चेव ।
३ प्रश्न-रयणप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केरिसयं पुढविफास पचणु-भवमाणा विहरति ?
३ उत्तर-गोयमा ! अणिटुं, जावअमणामं एवं जाव अहे. सत्तमापुढविणेरड्या, एवं आउफासं, एवं जाव वणस्सइफासं ।
४ प्रश्न-इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी दोच्चं सकरप्पभं पुढविपणिहाय सव्वमहंतिया वाहल्लेणं, सव्वखुड्डिया सव्वतेसु० ?
४ उत्तर-एवं जहा जीवाभिगमे बिइए णेरड्यउद्देसए ।
कठिन शब्दार्थ- अणुत्तरा-अनुत्तर (प्रधान), महतिमहालया-बहुत बड़, महंततरालम्बाई की अपेक्षा बहुत बड़े, महाविच्छिण्णतरा-चौड़ाई की अपेक्षा बहुत विशाल, महोबासतरा-महान् अवकाश वाले, महापइरिक्कतरा-बहुत शून्य स्थान वाले, महापवेसणतरा-महाप्रवेश वाले अर्थात् दुमरी गति में आ कर जिनमें बहुत जीव प्रवेश करते हैं, आइण्णतराअन्यन्त आकीर्ण ( व्याप्त), आउलतरा-अत्यंत व्याकुलता युक्त, अणोमाणतरा-अत्यन्त विशाल, अणोयणतरा-प्रेरणा रहित, महाकम्मतरा-महाकर्म वाले अर्थात् आयुष्य, वेदनीय आदि कर्मों की अधिकता वाले, महाकिरियतरा-कायिकी आदि महात्रिया वाले, महासवतरा
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