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________________ मगवता सूत्र-श. १. उ. २ देवावासों की संख्या विस्तारादि अणुतरविमाणे एगममएणं जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा अणुत्तगेववाइया देवा उववजंति, एवं जहा गेवेज विमाणेमु संग्वेज वित्थडेसु. णवरं किण्हपक्खिया, अभवसिद्धिया, तिमु अण्णाणेसु एए ण उववजंति, ण चयंति, ण पण्णत्तएमु भाणियब्वा, अचरिमा वि खोडिजंति, जाव संखेज्जा चरिमा पण्णत्ता, सेमं तं चेव । असंखेजवित्थडेसु वि एए ण भण्णंति, णवर अचरिमा अस्थि, सेसं जहा गेवेज एमु असंखेन्ज वित्थडेसु जाव' असंखेजा अचरिमा पण्णत्ता । कठिन शब्दार्थ-खोडिज्जति-निपध किये जात है। भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! अनुत्तर विमान कितने कहे गये हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! पाँच अनुत्तर विमान कहे गये हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! वे अनुत्तर विमान संख्येय योजन विस्तृत हैं या असंख्येय योजन विस्तृत हैं ? उत्तर-हे गौतम ! उनमें से एक संख्यात योजन विस्तृत है और शेष चार असंख्यात योजन विस्तृत हैं। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! पांच अनुत्तर विमानों में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमान में एक समय में कितने अनुत्तरोपपातिक देव उत्पन्न होते हैं और कितने शुक्ल लेशी उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न । १३ उत्तर-हे गौतम ! पाँच अनुत्तर विमानों में से संख्यात योजन विस्तार वाले 'सर्वार्थ-सिद्ध अनुत्तर विमान' में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अनुत्तरोपपातिक देव उत्पन्न होते हैं । जिस प्रकार संख्यात योजन विस्तार वाले ग्रेवेयक विमानों के विषय में कहा, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिए । विशेषता यह है कि यहाँ कृष्णपाक्षिक, अभव्य और तीन अज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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