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भगवती सूत्र-स. १३ उ. २ देवावासों की संख्या विस्तारादि
होती है और उत्पत्ति संख्यात की ही होती है, यह बात पहले बतला दी गई है। बारह देवलोकों के विमानावासों की संख्या इस प्रकार है
बत्तीस अट्ठवीसा बारस अट्ट चऊरो य सयसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ आणय पाणय कप्पे. चत्तारि सया आरणच्चुए तिष्णि ।
सत्त विमाण सयाई, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥ (पन्नवणा पद २) सौधर्मादि देवलोकों में क्रमश: विमान संख्या इस प्रकार है : --१ बत्तीस लाग्व २ अट्टाईस लाख ३ बारह लाम्ब ४ आठ लाख ५ चार लाख ६ पचास हजार ७ चालीम : हजार ८ छह हजार ९-१० चार सौ ११-१२ तीन सौ । कुल मिलाकर ८४९६७०० विमान हैं । ग्रैवेयक की पहली त्रिक में १११, दूसरी त्रिक में १०७, तीसरी त्रिक में १०० विमान होते हैं और अणुत्तरोपपातिक देवों के ५ विमान होते हैं । कुल ८४९७०२३ विमान होते हैं।
इन देवलोकों में लेश्या इस प्रकार है:
सौधर्म और ईशान देवलोक में मुख्य रूप से तेजालेल्या होती है । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक, इन तीन देवलोकों में पद्मलेश्या होती है। उसमे आगे के देवलोकों में एक शुक्ल लेश्या होती है ।
१२ प्रश्न-कइ णं भंते ! अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता ? १२ उत्तर-गोयमा ! पंच अणुत्तरविमाणी पण्णता । प्रश्न-ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ? उत्तर-गोयमा ! संखेजवित्थडे य असंखेजवित्थडा य ।
१३ प्रश्न-पंचसु णं भंते ! अणुत्तरविमाणेमु संखेजवित्थडे विमाणे एगसमएणं केवइया अणुत्तरोववाइया देवा उववज्जंति, केवइया मुक्कलेस्सा उववज्जति, पुच्छा तहेव ।
१३ उत्तर-गोयमा ! पंचसु णं अणुत्तरविमाणेसु संखेजविस्थडे
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