________________
.
भगवती सूत्र-म. १७ उ. .१२ जीवों के आहारादि की सम-विषमता
२६४१ -
कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा । ..
३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! एगिंदियाणं कण्हलेस्साणं जाव विसेसाहिया वा ?
३ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिदियाणं तेउलेस्सा. काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसा. हिया ।
४ प्रश्न-एएसि णं भंते ! एगिदियाणं कण्हलेस्साणं इड्ढी० ? ४ उत्तर-जहेव दीवकुमाराणं ।
@ सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति *
॥ सत्तरसमे सए वारसमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-समाहारा-ममान आहार वाले।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! सभी एकेन्द्रिय जीव समान आहार वाले है ? समान शरीर वाले हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक में पृथ्वीकायिक जीवों की वक्तव्यता के समान यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये यावत् वे न तो समान आयुष्य वाले हैं और न एक साथ उत्पन्न हुए हैं।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों के लेश्याएँ कितनी कही गई हैं?
२ उत्तर-हे गौतम ! चार लेश्याएँ कही गई हैं। यथा-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org