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२६४० भगवती सूत्र-श. १७ : १२ जीवों के आहारादि की सम-विषमत
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्म- कल्प में समुद्घात कर के इस रत्नप्रमा पृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातबलय और तनुवातवलयों में वायुकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् । जिस प्रकार सौधर्म - कल्प के वायुकायिक जीवों का उत्पाद सातों पृथ्वियों में कहा, उसी प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के वायुकायिक जीवों का उत्पाद यावत् अधः सप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
॥ सत्रहवें शतक का ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १७ उद्देशक १२
जीवों के आहारादि की सम-विषमता
१ प्रश्न - एगिंदिया णं भंते ! सच्चे समाहारा ? १ उत्तर - एवं जहा पढमसए विइयउद्देसर पुढविक्काइयाणं तवया भणिया सा चैव एगिंदियाणं इह भाणियव्वा जाव समा उया, समोववष्णगा।
२ प्रश्न - एगिंदियाणं भंते ! कह लेस्साओ पण्णत्ताओ ? २ उत्तर - गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा
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