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भगवती सूत्र-श. १७ उ. ११ ऊर्च वायुकायिक का मरण-समुद्घात
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हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ सत्रहवें शतक का दसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १७ उद्देशक ११
ऊर्ध्व वायुकायिक का मरण-समुद्घात
१ प्रश्न-वाउपकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए, तणुवाए, घणवायवलएसु, तणुवायवलएसु, वाउकाइयत्ताए उवजित्तए से णं भंते ! ०?
१ उत्तर-सेसं तं चेव, एवं जहा सोहम्मे वाउचकाइओ सत्तसु वि पुढवीसु उबवाइओ एवं जाव ईसिप्प भाराए वाउक्काइओ अहेसत्तमाए जाव उववाएयव्यो ।
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के ॥ सत्तरसमे सए इक्कारसमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-तणुवायवलएसु-तनुवात वलयों में ।
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