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शतक १७ उद्देशक १०
अधो वायुकायिक का मरण-समुद्घात १ प्रश्न-वाउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं० ?
१ उत्तर-जहा पुढविकाइओ तहा वाउकाइओ वि, णवरं वाउकाइयाणं चत्तारि समुग्घाया - पण्णत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्घाए जाव वेरबियसमुग्घाए । मारणंतियसमुग्घाए णं समोहणमाणे देसेण वा समोहणइ०, सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओ ईसिपब्भाराए उववाएयव्यो।
8 सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के
॥ सत्तरसमे सए दसमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्म-कल्प में वायुकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिये । विशेष में वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात होती है । यथा-वेदना-समुद्घात यावत् वैक्रिय समुद्घात । वे वायुकायिक जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होकर देश से समुद्घात करते हैं, इत्यादि पूर्ववत् यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में समुद्घात कर.....। वायुकायिक जीवों का उत्पाद ईषत्प्रारभारा पृथ्वी तक जानना चाहिये।
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