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भगवती सूत्र-दा. १७ उ. २ बाल, पण्डित और बालपण्डित
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'एकान्त बाल' कहलाता है, तो हे भगवन् ! अन्यतीथियों का यह कथन किस प्रकार सत्य हो सकता है. ?
५ उत्तर-हे गौतम ! अन्यतीथियों ने जो इस प्रकार कहा है कि यावत् 'एकान्त बाल कहलाता है,' उनका यह कथन मिथ्या है । हे गौतम ! में इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपित करता हूँ कि 'श्रमण, पण्डित है ' और श्रमणोंपासक, वाल-पण्डित है, परन्तु जिस जीव ने एक भी प्राणी के वध की विरति की है, वह जीव 'एकांत बाल' नहीं कहलाता, वह बाल-पंडित' कहलाता है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव बाल हैं, पण्डित हैं या बालपण्डित हैं ?
६ उत्तर-हे गौतम ! जीव बाल भी हैं, पण्डित भी हैं और बालपण्डित भी हैं।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिकों के विषय में प्रश्न ।
७ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक बाल हैं, पण्डित नहीं और बाल-पण्डित भी नहीं हैं। इस प्रकार दण्डक क्रम से यावत चतुरिन्द्रियों तक कहना चाहिये।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के विषय में प्रश्न ।
८ उत्तर-हे गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यच बाल हैं और बालपण्डित भी हैं, पण्डित नहीं है । मनुष्य, सामान्य जीवों के समान हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों को नरयिकों के समान जानना चाहिये ।
'विवेचन-'श्रमण, पण्डित (सर्वविरति चारित्र वाले) हैं और धमलोपासक, बालपण्डित (देश-विरति चारित्र वाले) हैं।' अन्यतीथिक, जिनमत सम्मत इन दो पक्षों का अनुवाद करके उनमें से द्वितीय पक्ष को दूषित करते हुए कहते हैं कि "जो जीव, सभी जीवों के वध की विरति बाला होते हुए भी जिसके एक भी जीव का वध अनिक्षिप्त (खुला) है, ऐसे श्रमणोपासक को भी 'एकान्त बाल' कहना चाहिये ।" श्रमण भगवान् महावीर स्वामी फरमाते हैं कि अन्याथियों की यह मान्यता मिथ्या है । जिस जीव को एक जीव के वध की भी विरति हो, उसे भी एकान्त बाल नहीं कह कर -'बालपण्डित' कहना चाहिये । क्योंकि वह देशविरत है। जो देशविरत हो, उसे एकान्त बाल नहीं कहना चाहिये।
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