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भगवती सूत्र-श १७ उ. २ जीव और आत्मा की अभिन्नता
संयतादि और पण्डितादि शब्दों में यद्यपि शब्द की अपेक्षा भेद है, किन्तु अर्थ की अपेक्षा कोई भेद नहीं है । केवल अपेक्षा भेद है । क्रिया को अपेक्षा संयतादि शब्दों का व्यपदेश होता है और बोध विशेप की अपेक्षा पण्डितादि शब्दों का व्यपदेश होता है।
जीव और आत्मा की अभिन्नता
९ प्रश्न-अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति जाव परू. वेंति-'एवं खलु पाणाड्याए, मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया, पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादसणमल्लविवेगे वट्टमाणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया; उप्पत्तियाए जाव परिणामियाए वट्ट माणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया; उग्गहे ईहा अवाए, धारणाए वट्टमाणस्स जाव जीवाया; उट्ठाणे जाव परकम वट्टमाणस्स जाव जीवाया; णेग्इयत्ते, तिरिक्ख मणुस्स-देवत्ते वट्टमाणस्स जाव जीवाया, णाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमाणस्स जाव जीवाया; एवं कण्हलेस्साए जाव सुकलेस्साए; सम्मदिट्टिए ३, एवं चरखुदंसणे ४, आभिणिवोहियणाणे ५, मतिअण्णाणे ३, आहारसण्णाए ४ एवं ओरालियसरीरे ५, एवं मणोजोए ३, सागारोवओगे, अणागारोवओगे वट्टमाणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया,' से कहमेयं भंते ! एवं ?
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