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भगवती सूत्र-श. १७ उ. २ बाल, पण्डित और बालपण्डित
६.७
स्वीकार कर विचरता है। संयतासंपत जीव, धर्माधर्म में स्थित होता है और देश-विरति स्वीकार कर विचरता है। इसलिये हे गौतम ! उपर्युक्त रूप से कहा गया है।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, धर्म में स्थित होते हैं, अधर्म में स्थित होते हैं या धर्माधर्म में स्थित होते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! जीव, धर्म में, अधर्म में और धर्माधर्म में स्थित होते हैं।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीव, इत्यादि प्रश्न ?
३ उत्तर-हे गौतम ! नै रयिक न तो धर्म में स्थित हैं और न धर्माधर्म में स्थित हैं, वे अधर्म में स्थित है। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना चाहिये।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यच जीव, इत्यादि प्रश्न ?
४ उत्तर-हे गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तियंच जीव, धर्म में स्थिर नहीं हैं, अधर्म में स्थित हैं और धर्माधर्म में भी स्थित हैं। मनुष्यों के विषय में जीवों के समान जानना चाहिये । वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिये ।
विवेचन-सोना, बैठना आदि क्रियाएँ मूर्त आसनादि पर ही हो सकती हैं, धर्म, अधर्म और धर्माधर्म अमूर्त हैं, इसलिए इन पर बैठना, सोना आदि नहीं हो सकता। 'धर्म' शब्द से यहाँ चारित्र धर्म और अधर्म' शब्द से अविरति तथा धर्माधर्म' पद से देशविरति विवक्षित है। इसलिये इनमें कोई जीव सोना, बठना आदि क्रिया नहीं कर सकता।
बाल, पण्डित और बालपण्डित
५ प्रश्न-अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति जाव परू. वेंति एवं खलु समणा पंडिया, समणोवासया वालपंडिया, जस्स णं
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