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________________ २६०२ भगवती सूत्र-ग. १७ उ. १ गरीर इन्दियो योग १४ प्रश्न-जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं णिवत्तमाणे कइ. किरिए ? १४ उत्तर-गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए. सिय पंचकिरिए; एवं पुढविकाइए वि, एवं जाव मणुस्से । १५ प्रश्न-जीवा णं भंते ! ओरालियसरीरं णिवत्तमाणा कइ. किरिया ? १५ उत्तर-गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि; एवं पुढ विकाइया वि, एवं जाव मणुस्सा । एवं वेउव्विय सरीरेण वि दो दंडगा, णवरं जस्स अस्थि वेउब्वियं, एवं जाव कम्मगसरीरं; एवं सोइंदियं जाव फासिदियं एवं मणयोगं, वयजोगं, कायजोगं, जस्स जं अत्थि तं भाणियव्यं; एए एगत्त-पहुत्तणं छन्वीसं दंडगा। कठिन शब्दार्थ-सिय-कदाचित् । भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! औदारिक शरीर को बनाता हुआ (बांधता हुआ) जीव कितनी क्रिया वाला होता है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक शरीर को बनाता हुआ जीव, कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार और पांच क्रिया वाला होता है। इसी प्रकार पृथ्वीकाय यावत् मनुष्य तक कहना चाहिए। १५ प्रश्न-हे भगवन् ! औदारिक शरीर बनाते हुए अनेक जीव, कितनी क्रिया वाले होते हैं ? १५ उत्तर-हे गौतम ! वे कदाचित् तीन, चार और पांच क्रिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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