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भगवती भूत्र--१५ ५ पुप और ताल वृक्ष को क्रिया
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लेइ वा, पवाडेइ वा तावं च णं मे पुरिसे काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरहिंतो मूले णिव्यत्तिए जाव वोए णिब्बत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा।
कठिन शब्दार्थ-तालमारुहइ-ताल के वृक्ष पर चढ़, पचालेमाणे-चलाता हुआ, पवाडेमाणे-नीचे गिराता हुअा, णिवत्तिए-उत्पन्न हुआ, निष्पन्न हुआ, गरुयत्ताए-भारीपन मे, ववरोवेइ-घात करने वाला हो, वोससाए-म्या भाविक रूप से ।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन ! कोई पुरुष, ताड़ के वृक्ष पर चढ़े और उसके फलों को हिलावे या नीचे गिरावे, तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! जब तक वह पुरुष, ताड़ के वृक्ष पर चढ़ कर ताड़ के फल को हिलाता है या नीचे गिराता है, तब तक उस पुरुष को कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं। जिन जीवों के शरीर द्वारा ताड़-वृक्ष और ताड़फल उत्पन्न हुआ है, उन जीवों को भी कायिको आदि पाँच क्रियाएँ लगती हैं।
६ उत्तर-हे भगवन् ! उस पुरुष के द्वारा हिलाने या तोड़ने पर वह ताड़-फल अपने भार के कारण यावत् नीचे गिरे और उस ताड़-फल द्वारा जो जीव यावत् जीवित से रहित हो जाते हैं, तो उससे उस फल तोड़ने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
६ उत्तर-हे गौतम ! जब वह पुरुष उस फल को तोड़ता है और वह फल अपने भार से नीचे गिरता हुआ जीवों को यावत् जीवित से रहित करता है, तब वह पुरुष कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन जीवों के शरीर से ताड़-वृक्ष निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को यावत् चार क्रियाएँ लगती है। जिन जीवों के शरीर से ताड़-फल निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को कायिकी आदि पांच क्रियाएँ लगती हैं। जो जीव नीचे पड़ते हुए ताड़-फल के लिये स्वा
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