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भगवती सूत्र-श. १६ उ ८ लोक के अन्त में जीव का अस्तित्व
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के बहुत देश और वेइन्द्रिय के बहुत देश' यह बीच का भंग लोक-दन्तक का अभाव होने से नहीं बनता है । इस प्रकार तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेंद्रिय और अनिन्द्रिय के साथ दोदो भंग होते हैं । इस प्रकार जीव-देश आश्रयो ग्यारह भंग होते हैं । यहाँ जीव-प्रदेश आश्रयी भंग इस प्रकार कहने चाहिये । यथा-एकेन्द्रियों के प्रदेश और बेइन्द्रिय के प्रदेश । एकेन्द्रियों के प्रदेश और वेइन्द्रियों के प्रदेश । इस प्रकार तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय के प्रदेश के विषय में भंग जानने चाहिये । केवल 'एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और वेइन्द्रिय का प्रदेश'-यह प्रथम भंग असम्भवित होने से घटित नहीं हो सकता । 'एकेद्रिय के बहुत प्रदेश'-इस असंयोगी एक भंग को मिलाने से जीव-प्रदेश आश्रयी ग्यारह भंग होते हैं । ऊपर के चरमान्त में कहे अनुसार रूपी अजीव के चार और अरूपी अजीव के छह, ये सब मिल कर अजीवों के दस भेद होते हैं।
६ प्रश्न-इमीले णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते किं जीवा० पुच्छ ।
६ उत्तर-गोयमा ! णो जीवा, एवं जहेव लोगस्स तहेव चत्तारि वि चरिमंता जाव उत्तरिल्ले, उवरिल्ले तहेव, जहा दसमसए विमला दिसा तहेव गिरवसेस । हेछिल्ले चरिमंते जहेव लोग स्म हेट्ठिल्ले चरिमंते तहेव, णवरं देसे पंचिंदिएसु तियभंगो त्ति सेसं तं चेव । एवं जहा रयणप्पभाए चत्तारि चरिमंता भणिया एवं सक्करप्पभाए वि, उवरिम हेछिल्ला जहा रयणप्पभाए हेट्ठिल्ले । एवं जाव अहेसत्तमाए । एवं सोहम्मस्स वि जाव अच्चुयस्स । गेविजविमाणाणं एवं चेव, णवरं उवरिम हेडिल्लेसु चरिमंतेसु देसेसु पंचिंदियाण वि मझिल्लविरहिओ चेव, सेसं तहेव । एवं जहा गेवेज
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