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________________ भगवती सूत्र-१. १६ उ. ८ लोक के अन्त में गाय का अस्तित्व २५७७ विवेचन-पूर्व दिशा का चरमान्त विषम एक प्रदेश के प्रतर रूप है । इसलिये उसमे असंख्य प्रदेशावगाहो जीव का मदभाव नहीं हो सकता। इसलिये वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश और जीव के प्रदेगों का एक प्रदेश में भा अवगाह हो सकता है, इसलिये वहाँ जीव-देश ओर जीव-प्रदे होते हैं । इसी प्रकार वहाँ पुद्गल-म्कन्ध धर्मास्तिकाय आदि के देश और उनके प्रदेश होने से अजाब, अजीव-देश और अजीव-प्रदेश भी होते हैं । जो जीव देश हैं, वे पथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीवों के देग अवय होते हैं। यह प्रथम विकल्प है। द्विक-संयोगी विकल्प इस प्रकार है। अथवा एकेन्द्रियों के ब्रहत देश और बेइन्द्रिय कदाचित् होने से उसका एक देश होता है । यद्यपि लोकान्त में बेइन्द्रिय जीव नहीं होता, तथापि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने वाला बेइंद्रिय जीव मरण-समुद्घात द्वारा उत्पत्ति देश को प्राप्त होता है, इस अपेक्षा से यह विकल्प बनता है । इस प्रकार दसवें शतक के प्रथम उद्देशक में आग्नेयी दिशा के विषय में जो भंग कह गये हैं, वे यहां कहने चाहिय । यथा-1 एकेन्द्रियों के देश और एक बंइन्द्रिय का देश । २ अथवा एकेन्द्रियों के देश और बेइन्द्रिय के देश ।। अथवा एकेन्द्रियों के देश और बेइन्द्रियों के देश । ४ अथवा-केन्द्रियों के देवा और एक तेइन्द्रिय का दश । ५ अथवा-एकेन्द्रियों के देश और तेइन्द्रिय के देश । ६ अथवा -एकेन्द्रियों के देश और तेइन्द्रियों के देश। इस प्रकार चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय के तीन तीन भंग कहने चाहिये । अनिन्द्रिय के भंग भी इसी प्रकार समझने चाहिये । परन्तु आग्नेयी दिशा के विषय में वहाँ तीन भंग कहे हैं. उनमें से 'एकेन्द्रियों के देश ओर.. अनिन्द्रिय का देश' यह प्रथम भंग यहाँ नहीं कहना चाहिये । क्योंकि केवली-समुद्घात के समय आत्म-प्रदेश कपटाकार होते हैं. तब पूर्व-दिशा के चरमान्त में प्रदेशों की वृद्धिहानि होने से विषमता होती है। इसलिये लोक के दन्तक (दांतों में-विषम स्थानों) में अनिन्द्रिय जीव के (केवलज्ञानी के) बहुत देशों का सम्भव है, एक देश का नहीं । इसलिये ऊपर कहा हुआ भंग अनिन्द्रिय में लागू नहीं होता। अरूपी अजीवों के छह प्रकार कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं । १ धर्मास्तिकाय देश २ धर्मास्तिकाय प्रदेश ३ अधर्मास्तिकाय देश ४ अधर्मास्तिकाय प्रदेश ५ आकाशास्तिकाय देश क्षौर ६ आकांशास्तिकाय प्रदेश । समय क्षेत्र का अभाव होने से वहाँ अद्धासमय नहीं है। देश भंगों में एकेन्द्रिय सम्बन्धी असंयोगी एक भंग होता है । एकन्द्रिय के साथ क्रमशः बेइन्द्रिय, तेइंन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय के तीन-तीन भंग होते हैं । अनिन्द्रिय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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