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________________ २५७६ भगवती सूत्र-श. १६ उ. ८ लोक के अन्त में जीव का अस्तित्व ३ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से सभी कहना चाहिए । इसी प्रकार पश्चिम चरमान्त और उत्तर चरमान्त के विषय में भी कहना चाहिए । ४ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव है, इत्यादि प्रश्न ? ४ उत्तर-हे गौतम ! वहां जोव नहीं हैं किन्तु जीव के देश है, जीव के प्रदेश हैं यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश हैं, वे अवश्य एकेन्द्रियों और अनिन्द्रियों के देश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश और एक बेइन्द्रिय का एक देश है। २ अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश और बेइन्द्रियों के देश हैं। इस प्रकार बीच के भांगे को छोड़ कर द्विक-संयोगी सभी भंग कहने चाहिए। इसी प्रकार यावत पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए । जहाँ जो जीव प्रदेश हैं, वे अवश्य एकेन्द्रियों के प्रदेश और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं । १ अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक बेइन्द्रिय के प्रदेश हैं। २ अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश और बेइन्द्रियों के प्रदेश है । इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग कहने चाहिये। इसी प्रकार यावत् पञ्चेन्द्रिय तक कहना चाहिये। दसवें शतक के प्रथम उद्देशक में कथित तमा दिशा की वक्तव्यता के अनुसार यहाँ पर अजीवों की वक्तव्यता कहनी चाहिये। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक के अधस्तन (नीचे के) चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि प्रश्न ? ५ उत्तर-हे गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव देश हैं और अजीव प्रदेश हैं । जो जीव देश हैं, वे अवश्य एकेन्द्रियों के देश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के देश और बेइन्द्रिय का देश है। अथवा एकेन्द्रियों के देश और बेइन्द्रियों के देश हैं। इस प्रकार बीच के भंग को छोड़ कर शेष भंग कहने चाहिये यावत् अनिन्द्रियों तक कहना चाहिये । सभी प्रदेशों के विषय में पूर्व चरमान्त के प्रश्नोत्तर के अनुसार कहना चाहिये । परंतु उसमें प्रथम भंग नहीं कहना चाहिये। अजीवों के विषय में उपरिम चरमान्त के समान कहना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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