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________________ २५७२ भगवती सूत्र-श. १६ उ. ७ उपयोग के भेद णिरवसेसं णेयव्वं । * सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति * ॥ सोलसमे सए सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का कहा है ? १ उत्तर-हे गौतम ! उपयोग दो प्रकार का कहा है। यहां प्रज्ञापना सूत्र का २९ वां उपयोग-पद और तीसवां 'पासणया' पद सम्पूर्ण कहना चाहिये। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-चेतना शक्ति के व्यापार को 'उपयोग' कहते हैं । उसके दो भेद हैंसाकारोपयोग और अनाकारोपयोग । साकारोपयोग के आठ भेद हैं । यथा-पांच ज्ञान और तीन अज्ञान । अनाकारापयोग के चक्षुदर्शन आदि चार भेद हैं। इत्यादि वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के उनतीसवें पद से जानना चाहिये। पश्यतो भावः पश्यत्ता' अर्थात् उत्कृष्ट बोध के परिणाम को 'पश्यत्ता' कहते हैं । उसके दो भेद हैं । साकार पश्यता और अनाकार पश्यता । साकार पश्यत्ता के छह भद हैं । यथा-मतिज्ञान को छोड़ कर चार ज्ञान और मतिअज्ञान को छोड़ कर दो अज्ञान । अनाकार पश्यत्ता के तीन भेद हैं । यथा-अचक्षुदर्शन को छोड़ कर शेष तीन दर्शन । यद्यपि 'पश्यत्ता' और उपयोग, ये दोनों साकार और अनाकार के भेद से तुल्य हैं, तथापि नहीं स्पष्ट या अस्पष्ट कालिक वोध हो अथवा वर्तमानकालिक बोध हो, उसे 'उपयोग' कहते हैं और त्रैकालिक स्पष्ट बोध को 'पश्यत्ता' कहते हैं । अर्थात् उपयोग में कालिक अथवा वर्तमान कालिक स्पष्ट अथवा अस्पष्ट बोध होता है और पश्यत्ता में कालिक स्पष्ट बोध होता है । पश्यता और उपयोग में यही अन्तर है। शंका-यहां अनाकार पश्यत्ता में चक्षुदर्शन को ग्रहण किया है, अचक्षुदर्शन को ग्रहण नहीं किया, इसका क्या कारण है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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