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________________ भगवती मूत्र-श. १६ उ. ८ लोक के अन्त में जीव का अस्तित्व २०७३ समाधान-प्रकृष्ट ईक्षण (प्रकर्पता युक्त देखने) को 'पश्यना' कहते हैं। इस प्रकार की पश्यत्ता वक्षुदर्शन में घटित हो सकती है, अचक्षुदर्शन में घटित नहीं हो सकता । क्योंकि चाइन्द्रिय के उपयोग का काल, शेष इन्द्रियों के उपयोग के काल से अल्प है। प्रकृष्ट ईक्षण चक्षुरिन्द्रिय का ही होता है । इसलिये 'पञ्चत्ता' में चक्षुदर्शन को ही ग्रहण किया गया है । दूसरी इन्द्रियों के दर्शन को ग्रहण नहीं किया गया है। 'पश्यत्ता' शब्द 'दृशिर-प्रेक्षणे' धातु से बना है। 'दृश्' धातु का अर्थ 'प्रेक्षण' अर्थात् प्रकृष्ट ईक्षण (प्रकर्पता युक्त देखना) है। ॥ सोलहवें शतक का सातवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक १६ उद्देशक ८ लोक के अन्त में जीव का अस्तित्व .. १ प्रश्न-केमहालए णं भंते ! लोए पण्णत्ते ? १ उत्तर-गोयमा ! महतिमहालए जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवणं । . २ प्रश्न-लोयस्स णं भंते ! पुरच्छिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा ? २ उत्तर-गोयमा ! णो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपएसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपएसा वि । जे जीवदेसा ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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