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भगवती सूत्र-शं. १६ उ. ६ मोक्ष फल-दायक स्वप्न
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२८-इत्थी वा पुरिसे वा मुविणते एर्ग महं पउमसरं कुसुमियं पाममाणे पामइ, ओगाहमाणे आगाहड, आगाढमिइ अप्पाणं मण्णइ. तावणामेव० तेणेव जाव अंतं करेइ ।
२९-इत्थी वा जाव मुविणंते एगं महं सागरं उम्मीवीयी जाव कलियं पासमाणे पामइ, तरमाणे तरइ, तिण्णमिइ अप्पाणं मण्णइ, तखणामेव०, तेणेव जाव अंतं करेइ।।
३०-इत्थी वा जाव सुविणंते एगं महं भवणं सव्वरयणांमयं पासमाणे पासइ, अणुप्पविसमाणे अणुप्पविसह, अणुप्पविट्टमिइ अप्पाणं मण्णइ, तक्खणामेव बुज्झइ. तेणेव जाव अंतं करेइ ।
३१-इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं विमाणं सव्व. रयणामयं पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिइ अप्पाणं मण्णइ, तक्खणामेव बुज्झइ, तेणेव जाव अंतं करे।
भावार्थ-२८ कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में कुसुमित महान् पद्मसरोवर देखे और उसमें प्रवेश करे तथा “मैंने इसमें प्रवेश किया है"ऐसा माने, इस प्रकार स्वप्न, देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में मोक्ष जाता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है।
२९-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त महासागर को देखे और उसे तिर जाय तथा "मैं इसे तिर गया हूँ"- . ऐसा माने, इस प्रकार स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में मोक्ष जाता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है।
३०-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में सर्व रत्नमय भवन देखे और
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