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-भमक्ती-मूत्र-स.-१३ उ. ६ मोक्ष फ.म-दायक स्वप्न
दोच्चेणं भव जाव अंतं करेइ । ___कठिन शब्दार्थ-अवकररासिं-कचरे का ढेर ।
भावार्थ-२३-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् चांदी का ढेर, सोने का ढेर, रत्नों का ढेर और वज्रों का ढेर देखे और उस पर चढ़े तथा अपने आप को उस पर चढ़ा हआ माने । ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है।
२४-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान घास का ढेर तथा तेजोनिसर्ग नामक पन्द्रहवें शतक के अनुसार यावत् कचरे का ढेर देखे और उसको बिखेर दे एवं 'मैंने बिखेर दिया है'-ऐसा अपने आपको माने । ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है।
२५-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् सर-स्तम्भ; वीरण. स्तम्भ, वंशीमूल स्तम्भ और वल्लिमूल स्तम्भ को देखे और उनको जड़ से उखाड़ कर फेंक दे तथा 'मैंने इन को उखाड़ कर फेंक दिया है'-ऐसा माने और स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है ।
२६-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान क्षीर कुम्भ, दधि कुम्भ, घृत कुम्भ और मधु कुम्भ देखे और उसे उठावे तया "मैंने इनको उठा लिया है"-ऐसा अपने आपको समझे, ऐसे स्वप्न को देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में मोक्ष जाता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है।
२७-कोई स्त्री या पुरुष,स्वप्न के अन्त में एक मदिरा का बड़ा कुम्भ, सौवीर का बड़ा कुम्भ, तेल का कुम्भ, चर्बी का कुम्भ देखे और उसे फोड़ डाले, तथा-"मैंने इसे फोड़ डाला है"-ऐसा माने । इस प्रकार का स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह दो भव में मोक्ष जाता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है।
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