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________________ भगवता सूत्र-श. १६ उ. ६ भगवान् के स्वप्न के फल २५६३ देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने विवित्र स्वसमय और परसमय के विविध विचार युक्त द्वादशांग गणिपिटक का कथन किया, प्रज्ञप्त किया, प्ररूपित किया, दिखलाया, निदर्शन किया और उपदर्शन किया, यथा-आचार, सूत्रकृत यावत् दृष्टिवाद । चौथे स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी, सर्वरत्न मय एक महान् माला-युगल को देख कर जाग्रत हुए । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दो प्रकार का धर्म कहा। यथा-अगार धर्म और अनगार धर्म । पांचवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने महान् और श्वेतवर्ण का एक गोवर्ग देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चार प्रकार का संघ हुआ, यथा-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका । ६-जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं परमसरं जाव पडि. बुद्धे तणं ममणे जाव वीरे चउबिहे देवे पण्णवेइ, तं जहा१ भवणवासी २ वाणमंतरे ३ जोइसिए ४ वेमाणिए । ७ जणं समणे भगवं महावीरे एगं महं सागरं जाव पडिबुद्धे तण्णं समणेणं भगवया महावीरेणं अणादीए अणवदग्गे जाव संसारकंतारे तिण्णे । ८ जणं समणे भगवं महावीरे एगं महं दिणयरं जाव पडिबुद्धे तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अणते अणुत्तरे जाव केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । ९ जण्णं समणे जाव वीरे एगं महं हरिवेरुलिय जाव पडिबुद्धे तण्णं समणस्स भगवओ महावीररस ओराला कित्ति-वण्ण-सह-सिलोया सदेवमणुयासुरे लोए परिभमंति. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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