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________________ २५६२ भगवता सूत्र-श. १: उ. ६ भगवान् क स्वप्न के फल भगवया महावीरेणं मोहणिजे कम्मे मूलाओ उग्धायिए । २ जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सुकिल्ल जाव पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुकन्झाणोवगए विहरइ । ३ जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्त जाव पडिबुद्धे, तण्णं समण भगवं महावीरे विचित्तं ससमयपरसमइयं दुवालगं गणिपिडगं आघवेड़, पण्णवेइ, परूवेइ, दंमेइ, णिदंसेइ, उवदंसेइ; तं जहा१ आयारं २ सूयगडं जाव १२ दिहिवायं । ४ जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडि. वुद्धे तण्णं समणे भगवं महावीरे दुविहे धम्मे पण्णवेइ, तं जहाअगोरधम्मं वा अणगारधम्मं वा । ५ जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सेयं गोवग्गं जाव पडिबुद्धे, तणं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउव्वण्णाइण्णे समणसंघे, तं जहा-१ समणा २ सम णीओ ३ सावया ४ सावियाओ। कठिन शब्दार्थ-उग्घायिए-नष्ट किया। भावार्थ-१७ प्रथम स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने भयंकर और तेजस्वी रूप वाले, . ताड़वृक्ष जितने ऊँचे एक पिशाच को पराजित किया हुआ देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया। दूसरे स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी, एक महान श्वेत पंख वाले पुंस्कोकिल को देख कर जाग्रत हुए, इसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर स्वामी शुक्लध्यान प्राप्त कर विचरे । तीसरे स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने एक महान चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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