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________________ २५६४ भगवती सूत्र-श. ५६ उ. ६ भगवान् के स्वप्न के फल इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति० २ । १० जणं समणे भगवं महावीरे मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए जाव परिबुद्धे, तणं समणे भगवं महावीरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगए केवली. पण्णत्तं धम्मं आघवेइ जाव उवदंसेइ । कठिन शब्दार्थ-ओराला-उदार । " भावार्थ- छठे स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने कुसुमित एक महान् पद्मसरोवर को देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक-इन चार प्रकार के देवों का कथन किया । सातवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने हजारों तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महा सागर को अपनी भुजाओं से तिरा देखा। इसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनादि अनन्त यावत् संसारकान्तार को तिर गये । आठवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी, तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य देख कर जाग्रत हुए । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निाधात, समग्र और प्रतिपूर्ण केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। नौवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्यमणि के समान अपनी आंतों से चारों ओर आवेष्टित-परिवेष्टित किया। इसका फल यह है कि देवलोक, मनुष्यलोक और असुरलोक में-भगवान् महावीर स्वामी केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक है-इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उदारकीति, स्तुति, सम्मान और यश को प्राप्त हुए । दसवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी, एक महान् मेरु पर्वत की मन्दर चूलिका पर सिंहासन पर बैठे हुए अपने आपको देख कर जाग्रत हुए । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने केवलज्ञानी हो कर देव, मनुष्य और असुरों से युक्त परिषद में धर्मोपदेश दिया यावत् उपदर्शित किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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