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भगवतो सूत्र-स. १६ उ. ६ साधु भी स्वप्न देखते हैं ?
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(४) तद् विपरीत स्वप्न-दर्शन--स्वप्न में जो वस्तु देखी है, जाग्रत होने पर उसमे विपरीत वस्तु की प्राप्ति होना 'तद् विपरीत स्वप्न-दर्शन' है । जैसे-किसी ने स्वप्न में अपने शरीर को अशचि पदार्थ से लिप्त देखा. किन्तु जाग्रतावस्था में कोई पुरुप उसके शरीर को शुचि-पदार्थ से लिप्त करे ।
(५) अव्यक्त स्वप्न-दर्शन-स्वप्न विषयक वस्तु का अस्पष्ट ज्ञान होना 'अव्यवत स्वप्न दर्शन' है।
सुप्त और जाग्रत, द्रव्य और भाव की अपेक्षा से दो प्रकार का कहा गया है । निद्रा लेना द्रव्य से सोना है और विरति रहित अवस्था भाव से सोना है । स्वप्न सम्बन्धी प्रश्न द्रव्य-निद्रा की अपेक्षा से किया गया है । सुप्त, जाग्रत सम्बन्धी प्रश्न विरति की अपेक्षा से है । जो जीव सर्व विरति से रहित हैं, वे भाव से सोये हुए हैं । जो जीव सर्व-विरत हैं, वे भाव से जाग्रत हैं और जो जीव देगविरत हैं वे सुप्त जाग्रत (सोते-जागते ) हैं ।
साधु भी स्वप्न देखते हैं ? ६ प्रश्न-संवुडे णं भंते ! सुविणं पासइ, असंवुडे सुविणं पासइ, संवुडासंवुडे सुविणं पासइ ?
... ६ उत्तर-गोयमा ! संवुडे वि सुविणं पासइ, असंवुडे वि सुविणं पासइ, संवुडासंवुडे वि सुविणं पासइ । संखुडे सुविणं पासइ अहा. तच्चं पासइ । असंवुडे सुविणं पासइ तहा वा तं होजा, अण्णहा वा तं होजा । संवुडासंवुडे सुविणं पासइ एवं चेव। .
७ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं संवुडा, असंवुडा, संवुडासंवुडा ?
७ उत्तर-गोयमा ! जीवा संवुडा वि, असंवुडा वि, संवुडासंवुडा वि । एवं जहेव सुत्ताणं दंडओ तहेव .भाणियब्यो ।
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