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भगवती सूत्र - ४६ ३ ६ स्वप्न की अवस्था और प्रकार
२ उत्तर - गोयमा ! णो सुत्ते सुविणं पासइ, णो जागरे सुविणं पासइ, सुत्त जागरे सुविणं पास
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३ प्रश्न- जीवा णं भंते ! किं सुत्ता, जागरा, सुत्तजागरा ? ३ उत्तर - गोयमा ! जीवा सुत्ता वि, जागरा वि, सुत्तजागरा
४ प्रश्न - णेरड्या णं भंते ! किं सुत्ता- पुच्छा ?
४ उत्तर - गोयमा ! णेरड्या सुत्ता, णो जागरा, जो सुत्तजागरा | एवं जाव चउरिं दिया ।
५ प्रश्न - पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सुत्ता- पुच्छा ? ५ उत्तर - गोयमा ! सुत्ता, णो जागरा, सुत्तजागरा वि । मनुस्सा जहा जीवा । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरइया |
कठिन शब्दार्थ - अहात च्चे- यथातथ्य पयाणे प्रतान (विस्तृत), तव्विवरीएतद्विपरीत, अवत्त-अव्यक्त, सुविणं स्वप्न ।
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भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! स्वप्न-दर्शन कितने प्रकार का कहा है ? १ उत्तर - हे गौतम ! स्वप्न-दर्शन पांच प्रकार का कहा गया है, यथा१ यथातथ्य स्वप्न-दर्शन २ प्रतान स्वप्न-दर्शन ३ चिन्ता स्वप्न-दर्शन ४ तद्विपरीत स्वप्न-दर्शन और ५ अव्यक्त स्वप्न-दर्शन ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! सोता हुआ प्राणी स्वप्न देखता है, जागता हुआ देखता है या सुप्त जाग्रत ( सोता-जागता ) प्राणी स्वप्न देखता है ?
२ उत्तर - हे गौतम! सोता हुआ प्राणी स्वप्न नहीं देखता, जागता हुआ
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