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________________ २५४८ भगवती सूत्र-श. १६ उ. ५ गादत्त का पूर्वभव नामक गाथापति रहता था। उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी, आकाशगत चक्र सहित यावत् देवों द्वारा खींचे जाते हुए धर्मध्वज युक्त शिष्य-समुदाय से सम्परिवृत्त पूर्वानुपूर्वी विचरते हुए और ग्रामानुग्राम जाते हुए यावत् मुनिसुव्रत अरिहन्त यावत् सहस्राम्र वन उद्यान में पधारे यावत् यथायोग्य अवग्रह ग्रहण कर विचरने लगे। परिषद् वन्दन करने के लिये आई यावत् पर्युपासना करने लगी। गंगदत्त गाथापति ने भगवान् श्री मुनिसुव्रत स्वामी के पधारने की बात सुनी । वह अति हृष्ट-तुष्ट हुआ यावत् बलिकर्म किया और शरीर को अलंकृत कर अपने घर से पैदल ही निकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य में होता हुआ सहस्राम्र वन उद्यान में श्री मनिसुव्रत स्वामी की सेवा में पहुँचा । तीन बार प्रदक्षिणा कर यावत तीन प्रकार से पर्युपासना करने लगा। ७-तएणं मुणिसुव्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावइस्स तीसे य महति० जाव परिसा पडिगया। तएणं से गंगदत्ते गाहावइ मुणि. सुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्टतुट्ट० उट्टाए उद्वेइ उट्ठाए उठ्ठित्ता मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमं. सित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुम्भे वदह, जं णवरं देवाणुप्पिया ! जेट्टपुत्तं कुर्युवे ठावेमि, तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे जाव पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध । ८-तएणं से गंगदत्ते गाहावई मुणिसुव्वएणं अरहया एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ट० मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमं. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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