________________
भगवती मूत्र-स. १६ उ. ५ गक्रेन्द्र के आगमन का कारण
२५४१
'परिणममाणा पोग्गला परिणया णो अपरिणया, परिणमंतीति पोग्गला परिणया, णो अपरिणया' । तं मायिमिच्छदिदिउववण्णगं एवं पडिहणइ ।
कठिन शब्दार्थ-अण्णया--किमी दिन, उक्खित्तपसिणवागरणाई-उत्क्षिप्त अर्थात शीघ्रता से पूछे गये प्रश्न और उनका 'व्याकरण' (उत्तर) पडिहणइ-पराभव किया (निरुत्तर किया)।
___ भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! जब कभी देवेन्द्र देवराज शक्र आता है, तब आप देवानप्रिय को वन्दन-नमस्कार सत्कार यावत् पर्युपासना करता है, परन्तु हे भगवन् ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र, आप देवानप्रिय को संक्षेप में आठ प्रश्न पूछ कर और उत्सुकतापूर्वक वन्दना-नमस्कार करके शीघ्र ही चला गया, इसका क्या कारण है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! उस काल उस समय में महाशक कल्प के 'महामामान्य' नामक विमान में महद्धिक यावत् महासुख वाले दो देव, एक ही “विमान में देवपने उत्पन्न हुए। उनमें से एक मायोमिथ्या-दृष्टि उत्पन्न हुआ
और दूसरा अनायी सम्यग्दृष्टि । उस मायी मिथ्यादृष्टि देव ने अमायो सम्यगदृष्टि देव से इस प्रकार कहा कि-"परिणमते हुए पुद्गल 'परिणत' नहीं कहलाते, अपरिणत कहलाते हैं, क्योंकि वे पुद्गल अभी परिणत हो रहे हैं, इसलिये वे 'परिणत नहीं, अपरिणत हैं ।" यह सुन कर अमायो सम्यग्दृष्टि देव ने मायो मिथ्यादष्टि देव से कहा-"परिणमते हए पुदगल परिणत' कहलाते हैं, 'अपरिणत' नहीं कहलाते, क्योंकि वे परिणमते हैं।" इस प्रकार कह कर अमायो सम्यग्दृष्टि देव ने मायी मिथ्यादृष्टि देव को प्रतिहत (पराजित) किया।
विवेचन-मिथ्यादृष्टि देव का कथन है कि जो पुद्गल परिणत हो रहे हैं, उन्हें 'परिणत' नहीं कहना चाहिये, क्योंकि वर्तमान काल और भूतकाल का परस्पर विरोध है। इसलिये उन्हें 'अपरिणत' कहना चाहिये। सम्यग्दृष्टि देव ने उत्तर दिया कि परिणमते हुए पुद्गलों को 'परिणत' कहना चाहिये, अपरिणत नहीं, क्योंकि जो परिणमते हैं, उसका
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org