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२५३२ भगवती सूत्र-स. १६ उ. ४ नैर थिकों को निर्जरा की श्रमणों मे तुलना
सएहिं वा वाससहस्सेण वा खवयंति ?
२ उत्तर-णो इणटे समटे ।
३ प्रश्न-जावइयं णं भंते ! छट्टभत्तिए समणे णिग्गंथे कम्म णिजरेइ एवइयं कम्मं णरएसु णेरड्या वाससहस्सेण वा वास सहस्से हिं वा वाससयसहस्सेण वा खवयंति ?
३ उत्तर-णो इणटे समटे।
४ प्रश्न-जावइयं णं भंते ! अट्ठमभत्तिए समणे णिग्गंथे कम्म णिजरेइ एवइयं कम्मं णरएसु णेरड्या वाससयसहस्सेण वा वाससयसहस्सेहिं वा वासकोडीए वा खवयंति ?
४ उत्तर-णो इणटे समढे।
५ प्रश्न-जावइयं णं भंते ! दसमभत्तिए समणे णिग्गंथे कम्म णिजरेइ एवइयं कम्मं णरएसु णेरड्या वासकोडीए वा वासकोडीहिं वा वासकोडाकोडीए वा खवयंति ?
५ उत्तर-णो इणट्टे समझे।
कठिन शब्दार्थ-जावइयं-जितने, अण्णगिलायए-अन्न के बिना ग्लानि को प्राप्त होने वाला, एवइयं-इतने, खवयंति-क्षय करता है ।
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! अन्नग्लायक (अन्न के बिना ग्लान होने वाला अर्थात् भूख को सहन नहीं कर सकने वाला)श्रमण-निर्ग्रन्थ, जितने कर्म खपाता है, उतने कर्म नैरयिक जीव, नरक में एक वर्ष में, अनेक वर्षों में या सौ वर्षों में खपाता है ?
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