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भगवती सूत्र - श. १६ उ. २ अवग्रह पाँच प्रकार का
दोहे २ रायोग्गहे ३ गाहाबड़ उग्गहे ४ सागारियउग्गहे ५ साहमियउग्गहे । जे इमे भंते ! अज्जत्ताए समणा णिग्गंथा विहति एएसि णं अहं उग्गहं अणुजाणामीति कट्ट समणं भगवं महावीरं वंद णमंस, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ।
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कठिन शब्दार्थ- वज्जपाणी-वज्रपाणि-जिसके हाथ में वज्र है, केवलकप्पं- संपूर्ण आभोएमा - जानता हुआ, समझता हुआ, पासइ देखा, उग्गहे - अवग्रह ( स्वामित्व ) । भावार्थ - ३ उस काल उस समय में शक देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् भोग भोगता हुआ विचरता था । अपने विशाल अवधिज्ञान से वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को देख रहा था । उसने जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को देखा । यहाँ तीसरे शतक के प्रथम उद्देशक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र की वक्तव्यता कहनी चाहिये । विशेषता यह है कि यहाँ शकेन्द्र आभियोगिक देवों को नहीं बुलाता, इसका सेनापति हरि नैगमेषी देव है | सुघोषा घण्टा है । विमान का बनाने वाला पालक देव है । विमान का नाम पालक है । इसके निकलने का मार्ग उत्तर दिशा है। दक्षिण पूर्व (अग्निकोण) में रतिकर पर्वत है । शेष सभी उसी प्रकार कहना चाहिये । यावत् शक्रेन्द्र अपना नाम सुना कर भगवान् की पर्युपासना करने लगा । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने धर्म-कथा कही यावत् परिषद् लौट गई । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म-कथा सुनकर देवेन्द्र देवराज शत्र हृष्ट एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने भगवान् को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा
| ४ प्रश्न - हे भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
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४ उत्तर - हे शक्र ! अवग्रह पाँच प्रकार का कहा गया है। यथा-देवेन्द्रावग्रह, राजावग्रह, गाथापति ( गृहपति ) अवग्रह, सागारिकावग्रह और साधर्मिकावग्रह | ( तत्पश्चात् शकेन्द्र ने इस प्रकार निवेदन किया कि ) हे भगवन् ! आज-कल
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