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________________ भगवती सूत्र - श. १६ उ. २अवग्रह पांच प्रकार का भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् पर्युपासना करते हैं । विवेचन - जरा (वृद्धावस्था) शारीरिक दुःख रूप है और शोक ( खेद - दीनता) मानसिक दुःख रूप है । इसलिये जिन जीवों के मनोयोग नहीं है, उन्हें केवल जरा होती और मनोयोग वाले जीवों को जरा और शोक दोनों होते हैं । अवग्रह पाँच प्रकार का ३- तेणं काले तेणं समर्पणं सबके देविंदे देवराया वज्रपाणी पुरंदरे जाव मुंजमाणे विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीव दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोरमाणे आभोएमाणे पासइ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे । एवं जहा ईसाणे तइयसए तहेव सक्के वि । वरं आभिओगे ण सदावेति, हरी पायत्ताणिया हिवई सुघोसा घंटा, पालओ विमाणकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले णिज्जाणमग्गे, दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरपव्वए, सेसं तं चैव जाव णामगं सावेत्ता पज्जुवासइ | धम्मकहा जाव परिसा पडिगया । तणं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ट तुट्टः समणं भगवं महावीरं वंदन णमंस, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी Jain Education International २५१९ ४ प्रश्न - कविहे णं भंते ! उग्गहे पण्णत्ते ? ४ उत्तर - सका ! पंचविहे उग्गहे पण्णत्ते, तं जहा -१ देवि For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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