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२५१८ भगवती सूत्र - श. १६ उ. २ जरा शारीरिक और शोक मानसिक
प्रश्न-से केणट्टेणं जाव 'णो सोगे' ?
उत्तर - गोयमा ! पुढविकाइयाणं सारीरं वेदणं वेदेंति, णो माणसं वेदवेदेंति, से तेणद्वेणं जाव णो सोगे । एवं जाव चउरिंदियाणं । सेसाणं जहा जीवाणं जाव वेमाणियाणं । 'सेवं भंते' ! सेवं भंते! त्ति जाव पज्जुवासइ ।
कठिन शब्दार्थ - जरा - बुढ़ापा, सोगे-शोक- खेद, दीनता ।
भावार्थ - १ प्रश्न - राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार पूछा - हे भगवन् ! जीवों के जरा और शोक होता है ।
१ उत्तर - हाँ गौतम ! जीवों के जरा भी होती है और शोक भी होता
है ।
प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर - हे गौतम ! जो जीव, शारीरिक वेदना वेदते हैं, उन जीवों के जरा होती है और जो जीव मानसिक वेदना वेदते हैं, उन जीवों के शोक होता है । इस कारण ऐसा कहा गया है कि जीवों के जरा भी होती है और शोक भी होता है । इसी प्रकार नैरयिकों यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा और शोक होता है ? २ उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक नहीं
होता ।
प्रश्न - हे भगवन् ! उन्हें शोक क्यों नहीं होता ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, मानसिक वेदना नहीं वेदते, अतः उनके जरा होती है, शोक नहीं होता। इस प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना चाहिये । शेष जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान जानना चाहिये यावत् वैमानिकों तक जानना चाहिये । हे
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