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भगवती सूत्र-श. १६ उ. २ जरा शारीरिक और शोक मानसिक
संयति जीवों में ही होता है। उनमें अविरति का अभाव होने पर भी प्रमाद रूप अधिकरण है।
॥ सोलहवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १६ उद्देशक २
जरा शारीरिक और शोक मानसिक
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवाणं भंते ! किं जरा, सोगे?
१ उत्तर-गोयमा ! जीवाणं जरा वि सोगे वि ? प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव 'सोगे वि' ?
उत्तर-गोयमा ! जे णं जीवा सारीरं वेदणं वेदेति, तेसि णं जीवाणं जरा, जे णं जीवा माणसं वेदणं वेदेति, तेसि णं जीवाणं सोगे, से तेणटेणं जाव सोगे वि । एवं गैरइयाण वि एवं जाव थणियकुमाराणं ।
२ प्रश्न-पुढविकाइयाणं मंते ! किं जरा, सोगे ? २ उत्तर-गोयमा ! पुढविकाइयाणं जरा, णो सोगे ।
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