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२५१६ - भगवती सूत्र-श. १६ उ. १ गरीर इन्द्रिया योग आर आधकरण
- १६ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक शरीर के समान यह भी जानना चाहिये । परन्तु जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो, उनकी अपेक्षा ही यह कथन है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में भी जानना चाहिये । जिन जीवों के जितनी इन्द्रियाँ हों, उनके विषय में उस प्रकार जानना चाहिये।
१७ प्रश्न-हे भगवन् ! मनोयोग को बांधता हुआ जीव, अधिकरणी है या अधिकरण ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय के समान जानो, वचन-योग के विषय में भी इसी प्रकार जानो, परन्तु वचन-योग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना चाहिये । काय-योग के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिये । काय-योग सभी जीवों के होता है । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते है।
विवेचन-पांच शरीर, पांच इन्द्रियाँ और तीन योग, इन तेरह बोलों की अपेक्षा यहाँ प्रश्न किये गये हैं। देव और नैरयिक जीवों में औदारिक शरीर नहीं होता. इसलिये नरयिक और देवों को छोड़ कर पृथ्वीकायिक आदि दण्डकों के विषय में प्रश्न किया गया है।
नैरयिक, देव, वायुकाय, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य, इनमें वैक्रिय-शरीर होता है। इनमें से नैरयिक और देवों को भवप्रत्यय वैक्रिय शरीर होता है । उन्हें जन्म से ही यह शरीर प्राप्त होता है । पञ्चेंद्रिय तिर्यंच और मनुष्य को लब्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर होता है। जिन्हें वैक्रिय शरीर करने की शक्ति प्राप्त हुई हो, उन्हीं को होता है । वायुकाय को भी वैक्रिय शक्ति प्राप्त होने से उसके वैक्रिय शरीर होता है।
__ आहारक शरीर संयत मनुष्य में ही होता है । इसलिये मूल प्रश्न मनुष्य के विषय में ही करना चाहिये । प्रथम प्रश्न सामान्य जीवों की अपेक्षा किया गया है । इसका कारण यह है कि यहां क्रम का अनुसरण किया है, क्योंकि यहां प्रत्येक प्रश्न सामान्य जीव समूह को अपेक्षा किया गया है और फिर दण्डकों के क्रम से प्रश्न किया गया है । आहारक शरीर
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