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भगवती सूत्र - १६ उ १ शरीर इन्द्रियां योग और अधिकरण
उत्तर - हे गौतम! प्रमाद की अपेक्षा वह अधिकरणी और अधिकरण है । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में जानना चाहिये । तैजस शरीर का कथन औदारिक शरीर के समान जानना चाहिये । परन्तु तैजस शरीर सभी जीवों के होता है । कार्मण शरीर के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिये ।
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१६ प्रश्न - जीवे णं भंते! सोइंदियं णिव्वत्तेमाणे किं अधि करणी, अधिकरणं ?
१६ उत्तर - एवं जहेब ओरालियसरीरं तहेव सोइंदियं पि भाणियव्वं, णवरं जस्म अस्थि सोइंदियं, एवं चक्खिदियघाणिंदिय जिम्मिदिय- फासिंदियाण वि, णवरं जाणियन्वं जस्स जं अस्थि । १७ प्रश्न - जीवे णं भंते! मणजोगं णिव्वत्तेमाणे किं अधि करणी, अधिकरणं ?
१७ उत्तर - एवं जहेव सोइंदियं तहेव णिरवसेसं, वइजोगो एवं चैव, णवरं एगिंदियवज्जाणं । एवं कायजोगो वि, णवरं सव्वजीवाणं जाव वेमाणिए ।
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* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति
|| सोलसमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ - १६ प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय को बाँधता हुआ जीव, अधिकरण है या अधिकरण ?
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