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________________ भगवती सूत्र-शे. १३ उ. १ लेग्या में परिवर्तन ०१५७ .. माणेसु कण्हलेस परिणमइ, कण्हलेसं परिणमित्ता कण्हलेसेसु णेरइ. एसु उबवजंति, से तेणटेणं जाव उववति । ____२० उत्तर-मे पूर्ण भंते ! कण्हलेस्से जाव मुक्कलेस्से भवित्ता णीललेस्सेसु णेरइएमु उववजंति ? २० उत्तर-हंता, गोयमा ! जाव उववज्जति । प्रश्न-से केणटेणं जाव उववजति ? उत्तर-गोयमा ! लेस्सटाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झ- . माणेसु वा णीललेस्सं परिणमइ, णोललेस्सं परिणमित्ता णीललेस्सेसु णेरइएसु उववजंति, से तेणटेणं गोयमा ! जाव उववज्जति । २१ प्रश्न-से गुणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से जाव भवित्ता काउलेस्सेसु णेरइएसु उववजंति ? २१ उत्तर-एवं जहा णीललेस्साए तहा काउलेस्साए वि भाणियबा, जाव से तेणटेणं जाव उववजंति । ® मेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ® ॥ पढमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-संकिलिस्समाणेसु-संक्लेश को प्राप्त होते हुए, विसुज्ममाणेसु-विशुद्ध होते हुए। ___ भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शक्ललेशी (कृष्णलेश्या योग्य) बन कर कृष्णलेशी-नरयिकों में उत्पन्न होता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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