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________________ भगवती सुत्र-स. १३ ७. १ लेश्या में परिवर्तन नरकावासों के विषय में भी तीनों आलापक कहने चाहिये। इसी प्रकार शर्कराप्रभा यावत् तमःप्रभा तक कहना चाहिये। १८ प्रश्न-हे भगवन् ! अधःसप्तम पृथ्वी के पांच अनुत्तर यावत् संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों में सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न । . १८ उत्तर-हे गौतम ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न नहीं होते, निध्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार उद्वर्तना के विषय में भी कहना चाहिये । जिस प्रकार रत्नप्रभा में सत्ता के विषय में मिथ्यादृष्टि आदि द्वारा अविरहित कहे गये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । इसी प्रकार असंख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिये। विवेचन-सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते।, इसलिये उनका विरह हो सकता है। लेश्या में परिवर्तन १९ प्रश्न-से पूर्ण भंते ! कण्हलेस्से, णीललेस्से, जाव सुक्कलेस्ले भविता कण्हलेस्सेसु णेरइएसु उववजंति ? १९ उत्तर-हंता, गोयमा ! कण्हलेस्मे जाव उववजंति । प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-कण्हलेस्से जाव उववजंति ? उत्तर-गोयमा ! लेस्सटाणेसु संकिलिस्समाणेसु संकिलिस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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