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________________ भगवती सूत्र-श. १६ उ. १ शरीर इन्द्रियां योग और अधिकरण २५१३ कठिन शब्दार्थ-जोए-योग (मन वचन और काया की प्रवृत्ति )। भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १० उत्तर-हे गौतम ! शरीर पाँच प्रकार के कहे गये हैं । यथा-औदारिक यावत् कार्मण। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई है ? ११ उत्तर-हे गौतम ! पाँच कही गई है। यथा-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय । १२ प्रश्न-हे भगवन् ! योग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! योग तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा-मन योग, वचन योग और काय योग । १३ प्रश्न-जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं णिवत्तमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ? १३ उत्तर-गोयमा ! अधिकरणी वि अधिकरणं पि । प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'अधिकरणी वि अधिकरणं पि' ? ___ उत्तर-गोयमा ! अविरतिं पडुच, से तेणटेणं जाव अधिकरणं पि। १४ प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! ओरालियसरीरं णिवत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ? १४ उत्तर-एवं चेव, एवं जाव मणुस्से । एवं वेउब्वियसरीरं पि, णवरं जस्स अस्थि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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