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भगवती सूत्र - श. १६ उ १ तप्त लोह को पकड़ने में कितनी किया ? २५०७ एणं गहाय अहिकरासि उक्विमाणे वा णिक्खिमाणे वा कइ किरिए ?
४ उत्तर - गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्टाओ जाव णिक्खिवइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाड़वायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्टे, जेसिं पिणं जीवाणं सरीरेहिंतो अयो णिव्वत्तिए, सडासए णिव्वत्तिए, चम्मेट्टे णिव्वत्तिए, मुट्ठिए णिव्वत्तिए, अधिकरणी णिव्वत्तिया, अधिकरणिखोडी णिव्वत्तिया, उदगदोणी णिव्वत्तिया, अधिकरणसाला णिव्वत्तिया, ते विणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्टा |
कठिन शब्दार्थ-अयकोट्ठसि - लोहा तपाने को भट्टी, उब्विहमाणे परिवहमाणे-ऊँचानीचा करते हुए, णिव्वत्तिए - निवर्तित - (निष्पन्न हुई - बनी ) उक्खियमाणे णिक्खिवमाणेनिकालते प्रक्षेप करते ।
भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! लोहा तपाने की भट्टी में तपे हुए लोहे को, लोहे की संडासी से पकड़ कर ऊँचा- नीचा करने वाले पुरुष को कितनी किया लगती है ?
३ उत्तर - हे गौतम! जब तक वह पुरुष लोहा तपाने की भट्टी में लोहे की संडासी से लोहे को ऊंचा या नीचा करता है, तबतक कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी क्रिया तक पाँच क्रिया लगती है। जिन जीवों के शरीर से लोहा, लोहे की भट्टी, सण्डासी, अंगारे निकालने की सलाई और धमण बनी है, उन सभी जीवों को भी कायिकी यावत् पाँच किया लगती है ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! लोहे की भट्टी में से लोहे को संडासी से पकड़ कर एरण पर रखते और उठाते हुए पुरुष को कितनी क्रिया लगती है ? ४ उत्तर - हे गौतम! जब तक लोहे की भट्टी में से लोहे को लेकर
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