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भगवती सूत्र-श. १५ आराधना और केवलज्ञान
मना
बोधि (सम्यक्त्व) को प्राप्त करेगा। तत्पश्चात् मुण्डित हो कर अगारवास का त्याग कर के अनगारवास को ग्रहण करेगा। वहां श्रामण्य (चारित्र) को विराधना कर के मर कर दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देव रूप से उत्पन्न होगा। वहां से च्यव कर मनुष्य होगा और संयम लेकर यावत् विराधना कर के काल कर दक्षिगनिकाय के नागकुमार देवों में देवपने उत्पन्न होगा। वहां से च्यव कर मनुष्य होगा यावत् संयम की विराधना कर के दक्षिणनिकाय के सुवर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा। इसी प्रकार विद्युत्कुमार देवों में यावत् अग्निकुमार देवों को छोड़ कर दक्षिणनिकाय के स्तनितकुमारों तक यावत् वहां से निकल कर मनुष्य होगा यावत् चारित्र की विराधना कर के ज्योतिषी देवों में उत्पन्न होगा।
आराधना और केवलज्ञान
से णं तओ अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, जाव अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवताए उपजिहिति । से णं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, केवलं बोहिं बुझिहिति, तत्थ वि णं अवि. राहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चो ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति । से णं तओ चहत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति । तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवताए उववजिहिति । से णं तओहिंतो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए महासुक्के आणए आरणे । से णं तओ जाव
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