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भगवती सूत्रा १५ गोशालक का भव-भ्रमण
कूपी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत, रत्न करण्डिये के समान सुरक्षित, शीत, उष्ण यावत् परीषद् उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस प्रकार अत्यन्त संगोपित होगी। वह ब्राह्मण पुत्री गर्भवती होगी और अपने ससुराल से पीहर जाती हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से जल कर मरेगी और दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देव रूप से उत्पन्न होगी ।
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४८ - से णं तओहिंतो अगंतरं उब्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, माणुस्सं विग्गहं लभित्ता केवलं वोहिं बुज्झिहिति, के० २ बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिपिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओ - हिंतो जाव उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं तं चेत्र जाव तत्थ विणं विराहियसामण्णे कालमासे जाव किवा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवे देवत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओहिंतो अनंतरं • एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्णकुमारेसु, एवं विज्जु - कुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु, सेणं तओ जाव उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, जाव विराहियसामण्णे जोइसिएस देवेसु उववज्जिहिति ।
भावार्थ - ४८ वहाँ से च्यव कर मनुष्य के शरीर को धारण करके केवल
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