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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक का शव-भ्रमण
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सूरकंतमणिणिस्सियाणं, तेमु अणेगमयसहस्स० जाव किचा जाई इमाइं आउक्काइयविहाणाइं भवंति, तं जहा-उस्साणं जाव खातोदगाणं,तेसु अगेगमय. जाव पवायाइस्मइ । उम्मण्णं च णं खारोदएसु, खातोदएसु; सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा जाई इमाई पुढविक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा-पुढवीणं, सक्कराणं जाव सूरकंताणं, तेसु अणेगसय० जाव पञ्चायाहिति, उस्सण्णं च णं खरवायरपुढविक्काइएसु, सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किचा।
___ भावार्थ-फिर वनस्पति के भेद, यथा-वृक्ष, गुच्छ यावत् कुहुना, इनमें अनेक लाख बार मर कर उत्पन्न होगा और विशेष करके कटुरस वाले वृक्षों और बेलों में उत्पन्न होगा। सभी स्थानों पर शस्त्र से मारा जायगा । उसके बाद वायुकायिक जीवों के भेद, यथा-पूर्ववायु यावत् शुद्धवायु, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा। फिर ते उकाय के भेद, यथा-अंगार यावत् सूर्यकान्तमणि से निःश्रित अग्नि, उनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा। फिर अप्काय के भेद, यथा-अवश्याय यावत् खाई का पानी, उनमें अनेक लाख बार-विशेष कर खारे पानी और खाई के पानी में उत्पन्न होगा। सभी स्थानों में शस्त्र द्वारा मारा जायेगा। फिर पृथ्वीकायिक के भेद, यथा-पृथ्वी, शर्करा, यावत् सूर्यकान्तमणि, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा और विशेष कर खर-बादर पृथ्वीकाय में उत्पन्न होगा। सर्वत्र शस्त्र से वध होगा, यावत् काल करके
रायगिहे णयरे वाहिं खरियत्ताए उववजिहिइ । तत्थ वि णं सत्थवझे जाव किच्चा दुच्चं पि रायगिहे णयरे अंतो खरियत्ताए
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