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भगवती सूत्र - श. १५ गोशालक का भव - भ्रमण
फिर चतुरिन्द्रिय जीवों के भेदों में उत्पन्न होगा । यथा-अन्धिक, पौत्रिक इत्यादि प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद के अनुसार- यावत् गोमय कीटों में अनेक लाख बार उत्पन्न होगा । वहाँ से काल करके तेइन्द्रिय जीवों के भेद, यथा-उपचित यावत् हस्तीशौण्ड, इनमें उत्पन्न होगा, वहाँ से काल करके बेइन्द्रिय जीवों के भेद यथा-पुला कृमि यावत् समुद्रलिक्षा, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा ।
विवेचन - चर्म के पांखों वाले पक्षियों को 'चर्म- पक्षी' कहते हैं, यथा- चमगादड़ आदि । रोम की पांखों वाले पक्षियों को 'रोम पक्षी' (लोम पक्षी ) कहते हैं । ये दोनों तरह के पक्षी, मनुष्य क्षेत्र के भीतर और बाहर होते हैं । समुद्गक पक्षी (जिनकी पांखे हमेशा पेटी की तरह बन्द ही रहती हैं) और विततपक्षी (जिनकी पांखे हमेशा विस्तृत खुला हुई ही रहती हैं) ये दोनों प्रकार के पक्षी मनुष्य क्षेत्र से बाहर ही होते हैं ।
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों में उत्पन्न होने का जो यहाँ लाखों भवों का कथन किया है, वह सान्तर समझना चाहिये, निरन्तर नहीं। क्योंकि पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च या मनुष्य के भव निरन्तर सात-आठ से अधिक नहीं किये जा सकते। जैसा कि कहा है:"पंचिदियतिरियनरा सत्तट्टभवा भवग्गहेणं '
"
अर्थ - पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच अथवा मनुष्य के निरन्तर सात-आठ भव ही किये जा सकते हैं ।
इमाई वणरसइविहाणारं भवंति, तं जहा - रुक्खाणं गुच्छाणं जाव कुहणाणं, तेसु अणेगसय० जाव पचायाइस्सह । उस्सणं चणं कडुयरुक्खेसु कडुयवल्लीसु सव्वत्थ वि णं सत्यवज्झे जाव किचा जाईं इमाई वाउकाइयविहाणाई भवंति तं जहा - पाईण - वायाणं जाव सुद्धवायाणं, तेसु अणेगसयसहस्स० जाव किना जाई इमाई तेउकाइयविहाणाई भवंति तं जहा - इंगालाणं जाव
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