________________
भगपती सूत्र-म. १५ गोगालक का भव-भ्रमण
२४५३
सयसह० जाव किच्चा जाइं इमाइं च उप्पयविहाणाई भवंति, तं जहाएगखुराणं दुखुराणं गंडीपयाणं सणहपयाणं तेसु अणेगसयसहस्स० जाव किचा जाई इमाई जलयरविहाणाई भवंति, तं जहा-मच्छाणं, कच्छमाणं जाव मुसुमाराणं तेसु अणेगमयसहस्स० जाव किचा जाई इमाई चउरिंदियविहाणाई भवंति, तं जहा-अंधियाणं, पोत्तियाणं जहा पण्णवणापए, जाव गोमयकीडाणं, तेसु अणेगसय० जाव किच्चा जाइं इमाई तेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा-उवचियाणं जाव हत्यिसोडाणं, तेसु अणेग० जाव किचा जाई इमाई बेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा-पुलाकिमियाणं जाव समुद्दलिक्खाणं तेसु अणेगसय० जाव किच्चा जाई।
भावार्थ-वहाँ से यावत् निकल कर खेचर जीवों के जो ये भेद है, यथाचर्म-पक्षी, लोम-पक्षी, समुद्गक पक्षी और वितत-पक्षी उनमें अनेक लाख बार मर कर वहीं बारबार उत्पन्न होता रहेगा। सर्वत्र शस्त्र से मारा जाने पर दाह की उत्पत्ति से काल-समय काल करेगा। और भुजपरिसों के जो भेद हैं यथा-गोह, नकुल (नोलिया) इत्यादि प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद के अनुसार उन सभी में उत्पन्न होगा यावत् जाहक चौपाये जीवों में अनेक लाख बार मर कर वहीं बारबार उत्पन्न होगा। शेष सब खेचरवत जानना चाहिये यावत काल करके उरपरिसॉं के इन भेदों में उत्पन्न होगा, यथा-सर्प, अजगर, आशालिका और महोरग, इनमें अनेक लाख बार मर कर इन चतुष्पद जीवों के भेदों में उत्पन्न होगा, यथा-एकखुर वाला, दो खुर वाला, गण्डीपद और सनखपद् । उनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा। वहाँ से काल कर के इन जलचर जीवों के भेदों में उत्पन्न होगा, यथा-कच्छप यावत् सुंसुमार, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org