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________________ २४८६ भगवती सूत्र-श. १५ सुमंगल मुनि द्वारा विमलवाहन का विनाश इस प्रकार कहेंगे-"तू वास्तव में विमलवाहन राजा नहीं है, तू देवसेन राजा नहीं है और तू महापद्म राजा भी नहीं है । तू इससे पूर्व तीसरे भव में श्रमणों की घात करने वाला मंखलिपुत्र गोशालक था और तू छद्मस्थ अवस्था में ही मरा था। उस समय सर्वानुभूति अनगार ने समर्थ होते हुए भी तेरे अपराध को सम्यक प्रकार से सहन किया था, क्षमा किया था, तितिक्षा की थी और उसको अध्यासित (सहन) किया था। इसी प्रकार सुनक्षत्र अनगार ने भी यावत् अध्यासित किया था। उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने भी समर्थ होते हुए यावत् सहन किया था। परन्तु में इस प्रकार सहन यावत् अध्यासित नहीं करूंगा। मैं तुझे अपने तप तेज से घोड़ा, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार में कूटाघात की तरह राख का ढेर कर दूंगा। ४५-तपणं से विमलवाहणे राया सुमंगलेणं अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं तच्चं पि रहसिरेणं णोल्लावेहिति । तएणं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा तच्चं पि रहसिरेणं णोल्लाविए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमिओ पच्चोरुहइ, आ० २ पच्चो. रुहित्ता तेयासमुग्धाएणं समोहण्णिहिति, तेयासमुग्घाएणं समोहणित्ता सत्तट्ठ पयाइं पच्चोसक्किहिति, सत्तट्ट पयाई पच्चोसक्कित्ता विमलवाहणं रायं सहयं सरहं समारहियं तवेणं तेएणं जाव भासरासिं करोहिति । कठिन शब्दार्थ-पच्चोसक्किहिति-पीछे हटेंगे । भावार्थ-४५ जब सुमंगल अनगार, विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे तब वह अत्यन्त कुपित होगा यावत् क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित होगा। तब वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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