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भगवती मूत्र -ग. १५ मुमंगल मुनि द्वारा विमल वाहन का विदाग
२४८.५
लेंगे। तब विमलवाहन राजा, सुमंगल अनगार को दूसरी बार रथ के अग्रभाग से अभिघात कर नीचे गिरा देगा।
तपणं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा दोच्चं पि रहसिरेणं णोल्लाविए ममाणे मणियं मणियं उट्टेहिति, उद्वित्ता ओहिं पउंजेहिति, ओहिं पउंजित्ता विमलवाहणरस रणो तीतद्धं ओहिगा आभोएहिति, आभोइत्ता विमलवाहणं गयं एवं वइहिति‘णो खलु तुमं विमलवाहणे राया, णो खलु तुमं देवसेणे राया, णो खलु तुमं महापउमे राया, तुमं णं इओ तच्चे भवग्गहणे गोसाले णामं मंखलिपुत्ते होत्था, समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए, तं जइ ते तया सव्वाणुभूइणा अणगारेणं पभुणा वि होऊणं सम्मं सहियं खमियं तितिक्खियं अहियासियं जड़ ते तया सुणक्खतेणं अणगारेणं जाव अहियासियं, जइ ते तया समणेणं भगवया महावीरेणं पभुगा वि जाव अहिंयासियं, तं णो खलु ते अहं तहा सम्मं सहिस्सं जाव अहियासिस्स; अहं ते णवरं सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेजामि। .
कठिन शब्दार्थ-पभुणा-समर्थ होते हुए, तितिक्खियं-तितिक्षा की (सहन किया) सहयं-घोड़े सहित, सरह-रथ सहित, एगाहच्च-एक हो प्रहार में, कूडाहच्च-कूटाघात के समान (एक प्रहार में तिर टूट जाय वैसा), भासरासि-राख का ढेर ।
भावार्थ-तब सुमंगल अनगार धीरे-धीरे उठेंगे और अवधिज्ञान में उपयोग लगा कर विमलवाहन के अतीत-काल को देखेंगे। फिर वे विमलवाहन राजा से
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