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________________ २४८४ भावतो सूत्र-स.१५ सुमंगल मुनि द्वारा विमल वाहन का विनाश सुमंगल मुनि द्वारा विमलवाहन का विनाश ४४-तएणं से विमलवाहणे राया अण्णया कयाइ रहचरियं काउं णिजाहिइ । तएणं से विमलवाहणे गया सुभूमिभागस्स उजाणम्स अदूरसामंते रहचरियं करेमाणे सुमंगलं अणगारं टुं. छटेणं जाव आयावेमाणं पासिहिति, पासित्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं रहसिरेणं णोल्लावेहिति । तएणं से सुमंगले अणंगारे विमलवाहणेणं रण्णा रहसिरेणं णोल्लाविए समाणे सणियं सणियं उटेहिति, उद्वित्ता दोच्चं पि उड्ढं वाहाओ पगिझिय पगिझिय जाव आयावेमाणे विहरिस्सइ । तएणं से विमलवाहणे राया सुमंगलं अणगारं दोच्चं पि रहसिरेणं णोल्लावेहिति । कठिन शब्दार्थ-रहचरियं-रथचर्या, आयावेमाणे-आतापना लेते हुए, रहसिरेणंरथ के अग्र भाग से, गोल्लावेहिति-गिरा देंगे। - भावार्थ-४४ किसी दिन विमलवाहन राजा, रथचर्या करने के लिये निकलेगा, तव सुभूमि-भाग उद्यान से थोड़ी दूर रथचर्या करता हुआ वह राजा, निरन्तर छठ-छठ तप के साथ यावत् आतापना लेते हुए सुमंगल अनगार को देखेगा। उन्हें देखते ही वह कोपाविष्ट हो कर यावत् क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित होता हुआ रथ के अग्रभाग से सुमंगल अनगार को टक्कर मार कर नीचे गिरा देगा । जब विमलवाहन राजा रथ के अग्रभाग से सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देगा, तब सुमंगल अनगार धीरे-धीरे उठेगे और दूसरी बार फिर आतापना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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