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________________ भगवनी सूत्र-ग. १५ विमलवाहन का अनार्यपन २४८३ भागे णामं उजाणे भविस्सइ । मन्योउय० वण्णओ । तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पउप्पए सुमंगले णामं अणगारे जाइसंपण्णे० जहा धम्मघोसस्स वण्णओ जाव संखित्तविउलतेय. लेस्से, तिण्णाणोवगए, सुभूमिभागस्स उजाणरस अदरसामंते छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं जाव आयावेमाणे विहरिस्सइ । . - कठिन शब्दार्थ-पउप्पए-प्रपत्र । भावार्थ-४३ जब वे बहुत से माण्डलिक राजा, युवराज यावत् सार्थवाह आदि राजा से निवेदन करेंगे, तब वह विमलवाहन राजा "धर्म नहीं, तप नहीं"ऐसी बुद्धि होते हुए भी मिथ्या-विनय बता कर उनका निवेदन मान लेगा। ___ शतद्वार नगर के बाहर उत्तर पूर्व दिशा में सुभूमि भाग नामक उद्यान होगा । वह सब ऋतुओं के फल-फूलों से युक्त होगा, इत्यादि वर्णन । उस काल उस समय में विमल नाम के तीर्थंकर के प्रपौत्र 'सुमंगल' नामक अनगार होंगे। वे जाति-सम्पन्न इत्यादि ग्यारहवें शतक के ग्यारहवें उद्देशक में धर्मघोष अनगार के वर्णन के समान यावत् संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या वाले, तीन ज्ञान सहित वे सुमंगल अनगार, सुभमि-भाग उद्यान से न अति दूर न अति निकट निरन्तर छठ-छठ तप के साथ यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे। विवेचन-यहाँ जो 'विमल' नामक तीर्थकर का कथन किया गया है, वे टीकाकार के अनुसार उत्सर्पिणी काल में इक्कीसवें तीर्थंकर होंगे-ऐसा समवायांग सूत्र से ज्ञात होता है । वे अवसर्पिणी काल के चौथे तीर्थकर के स्थान में प्राप्त होते हैं। उनसे पहले के तीर्थकरों के अन्तर काल में करोड़ों सागरोपम व्यतीत हो जाते हैं और यह महापद्म राजा तो बारहवें देवलोक की बाईस सागरोपम की स्थिति पूर्ण कर के होगा । इसलिये इसकी संगति बैठना कठिन है, किन्तु इसकी संगति इस प्रकार वैठती है, बाईस सागरोपम की स्थिति के पश्चात् जो तीर्थंकर उत्सर्पिणी काल में होगा, उसका नाम 'विमल' होगा-ऐसा संभवित लगता है। वैसे महापुरुषों के अनेक नाम होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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