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भगवती सूत्र-ग. १५ गोगालक का भावी मनुष्य-भव
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४१-तएणं तस्स देवमेणम्स रण्णो अण्णा कयाइ सेए संखतलविमलसण्णिगासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पजिस्सइ । तएणं से देवमेणे राया तं सेयं संखतलविमलसण्णिगाम चउदंतं हत्थिरयणं दृरूढे समाणे सयदुवारं णयरं मझमझेणं अभिक्खणं अभिक्खणं अभिजाहिति, णिजाहिति य । तएणं सयदुवारे णयरे बहवे राई. सर० जाव पभिईओ अण्णमण्णं सदावेहिति, अण्णमण्णं सद्दावेत्ता वदेहिति-जम्हा णं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्णो सेए संखतलविमलसण्णिगामे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पण्णे, तं होउ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि णामधेजे 'विमलवाहणे विमलवाहणे' । तएणं तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि णामधेज्जे 'विमलवाहणे' त्ति ।
कठिन शब्दार्थ-संखतलविमलसण्णिगासे-शंख के दल-खण्ड अथवा तल के समान निर्मल ।
४१ भावार्थ-किसी दिन देवसेन राजा के यहाँ शंख-खण्ड अथवा शंख तल के समान निर्मल और श्वेत ऐसे चार दांतों वाला एक हस्तीरत्न उपस्थित होगा। देवसेन राजा, उस हस्तीरत्न पर चढ़ कर शतद्वार नगर के मध्य में होकर बार-बार आवागमन करेगा। तब नगर के बहुत-से माण्डलिक राजा यावत् सार्थवाह आदि परस्पर इस प्रकार कहेंगे-“हे देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' हो।" तब देवसेन राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' होगा।
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