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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक का भावी मनुष्य-भव
मस्स रणो अण्णया कयाइ दो देवा महड्ढिया जाव महेसक्खा सेणाकम्मं काहिति । तं जहा-पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य । तएणं सयदुवारे णयरे वहवे राईसर-तलवर० जाव सत्थवाहप्पभिईओ अण्णमण्णं सदावेहिति, अण्णमण्णं सहावेत्ता एवं वदेहिंति-'जम्हा णं देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दो देवा महड्ढिया जाव सेणाकम्मं करेंति, तं जहा-पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य, तं होउ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दोच्च पि णामधेजे 'देवसेणे देवसेणे' । तएणं तस्स महापउमस्स रण्णो दोच्चे वि णामधेजे भविस्सइ 'देवसेणे' त्ति २ ।
कठिन शब्दार्थ-सेणाकम्म-सैनिक कर्म ।
भावार्थ-जब वह महापद्म बालक कुछ अधिक आठ वर्ष का होगा, तब उसके माता-पिता शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में अत्यन्त बड़ा राज्याभिषेक करेंगे। वह महापद्म राजा महाहिमवान् आदि पर्वत के समान बलशाली होगा, इत्यादि वर्णन यावत् वह विचरेगा। किसी दिन उस महापद्म राजा के महद्धिक यावत् महासुख वाले दो देव सेना-कर्म करेंगे। उन देवों के नाम इस प्रकार हैं-पूर्णभद्र और माणिभद्र । शतद्वार नगर में बहुत से माण्डलिक राजा, युवराज, तलवर यावत् सार्थवाह प्रमुख परस्पर इस प्रकार कहेंगे कि-"हे देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा के पूर्णभद्र और माणिभद्र ये दो महद्धिक यावत् महासुख वाले देव, सेनाकर्म करते हैं, इसलिये हे-देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' हो । तब उस महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' होगा।
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