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भगवती सूत्र-दा. १३ उ. १ नैरमिकों में दृष्टि
उद्देश्क के अनुसार जाननी चाहिये। वहाँ की संग्रह गाथा यह है
काऊ दोसु तइया मीसिया नीलिया चउत्थीए । पंचमियाए मीसा कहा ततो परमकन्हा ॥
अर्थात् पहली और दूसरी नरक में कापोत लक्ष्या होती है। तीसरी नरक में कापोत और नील-वे दोनों लेश्याएं होती हैं। चौथी नरक में नील लेश्या होती है। पांचवी नरक में नील और कृष्ण - ये दोनों लेश्याएँ होती हैं। छठो नरक में कृष्ण लेश्या और सातवीं नरक में परमकृष्ण लेश्या होती है ।
चौथी संप्रभा नरक में कहा गया है कि यहाँ से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी नहीं उद्वर्तते हैं । इसका कारण यह है कि अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी प्रायः तीर्थंकर ही होते हैं । चोथी नरक से निकले हुए जीव, तीर्थंकर नहीं हो सकते और वहाँ से निकलने वाले अन्य जीव भी अवधिज्ञान, अवधिदर्शन लेकर नहीं निकलते ।
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सातवीं नरक में मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि वहाँ मिथ्यात्वी और समकित से पतित जीव ही उत्पन्न होते हैं । तथा वहाँ से इन तीन ज्ञानों में उद्वर्तना भी नहीं होती और वहाँ से निकले हुए जीव इन तीन ज्ञानों में उत्पन्न भी नहीं होते । यद्यपि सातवीं नरक में मिथ्यात्वी जीव ही उत्पन्न होते हैं, तथापि वहाँ उत्पन्न होने के बाद जीव समकित प्राप्त कर सकता हैं। समकित प्राप्त कर लेने पर वहाँ मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी पाये जा सकते हैं। इसलिये सातवीं नरक में इन तीन ज्ञान वाले जीवों का उत्पाद और उद्वर्तना तो नहीं है, किन्तु सत्ता है ।
नैरयिकों में दृष्टि
१५ प्रश्न- इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरयावाससय सहस्सेसु संखेज्ज वित्थडेसु णरपसु किं सम्मदिट्टी गेरइया उववजंति, मिच्छदिट्टी णेरड्या उववज्जंति, सम्मामिच्छदिट्टी पेरइया
उववजंति ?
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