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भगवती सूत्र-श. १५ गोशालक का भावी मनुप्य-भव
आउखएणं ३ जाव कहिं उववजिहिति ?
३९ उत्तर-गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे णयरे संमुइस्स रण्णो भदाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति । से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव वीइक्कंताणं जाव सुरूवे दारए पयाहिति ।
कठिन शब्दार्थ-विझगिरिपायमूले-विन्ध्य पर्वत की तलहटी में, दारए-बालक ।
भावार्थ-३९ प्रश्न-हे भगवन ! गोशालक का जीव देवलोक की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर, देवलोक से च्यव कर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा?
३९ उत्तर-हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, विन्ध्य पर्वत की तलहटी में पुण्ड्र देश के शतद्वार नामक नगर में, सन्मति नाम के राजा की भद्रा भार्या की कुक्षि में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। वह नौ मास और साढ़ा सात रात्रि-दिवस व्यतीत होने पर यावत् एक सुन्दर बालक को जन्म देगी।
४० ज रयणिं च णं से दारए जाइहिति, तं रयणिं च णं सयद्वारे णयरे सभितरवाहिरिए भारग्गमो य कुंभग्गसो य एउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिति । तएणं तस्स दारगरस अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते जाव संपत्ते वारसाहदिवसे अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिफण्णं णामधेनं काहिंति-'जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि जायंमि समाणमि सयदुवार णयरे सम्भितर
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